देनदार को भविष्य में एक निश्चित दिन यानी एक निश्चित अवधि के बाद पैसा चुकाना होता है।
यदि किसी व्यापार का स्वामी/मालिक एक व्यक्ति है तो वह एकाकी व्यापारी यानी प्रोपराइटर कहलाता है, और यदि मालिक दो या दो से अधिक व्यक्ति हैं तो साझेदार यानी पार्टनर्स कहलाते हैं। पर यदि बहुत से लोग मिलकर संगठित रूप से कंपनी के रूप में कार्य करते हैं तो वे उस कंपनी के अंशधारी यानि शेयर होल्डर्स कहलाते हैं।
आहरण (Drawings) - व्यापार का स्वामी अपने निजी खर्च के लिए समय-समय पर व्यापार में से जो रुपया या माल निकालता है वह उसका आहरण या निजी खर्च कहलाता है।
सम्पत्ति (Assets) - व्यापार या व्यवसाय की ऐसी समस्त वस्तुएँ जो व्यापार या व्यवसाय के संचालन में सहायक होती हैं और जिन पर व्यवसायी का स्वामित्व होता है, संपत्ति कहलाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं - 1. स्थाई संपतियां 2. चालू संपतियां।
स्थाई संपतियां (Fixed Assets) - इनसे आशय उन संपतियों से है, जो व्यवसाय में दीर्घकाल तक रखी जाने वाली होती हैं यानी जिनका लाभ व्यापार में कई वर्षों तक मिलता रहता है और जो पुनः विक्रय के लिए नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए ज़मीन (Land), बिल्डिंग, फर्नीचर, कंप्यूटर, वाहन, मशीन आदि।
चालू संपतियां (Current Assets) - इनसे आशय उन संपत्तियों से है जो आमतौर पर एक वर्ष से कम समय में उपयोग की जाती हैं यानी जो लंबे समय तक व्यापार में नहीं रहती हैं। जैसे नकदी या जिन्हें आसानी से नकदी में बदला जा सके। जैसे देनदार (debtors), बैंक बैलेंस, स्टॉक इत्यादि।
दायित्व (Liabilities) - वे सभी ऋण (Loan) जो व्यापार को अन्य व्यक्तियों अथवा अपने स्वामी या स्वामियों को चुकाने होते हैं दायित्व यानी Liabilities कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं - 1. स्थाई दायित्व (Fixed Liabilities) 2. चालू दायित्व (Current Liabilities)
स्थाई दायित्व (Fixed Liabilities) से आशय ऐसी देनदारियों से है जिनका भुगतान दीर्घकाल के पश्चात या व्यापार की समाप्ति पर करना होता है, जैसे - दीर्घकालीन ऋण (Long Term Loan), पूंजी (Capital), बिल्डिंग या लैंड को गिरवी रख कर बैंक से लिया हुआ Long Term Loan इत्यादि।
चालू दायित्व (Current Liabilities) से आशय ऐसी देनदारियों से है जिनका भुगतान निकट भविष्य में करना हो। प्रायः ये 1 साल से कम समय में चुकाना होती हैं यानी ये अस्थाई होती हैं और व्यापार संचालन में घटती-बढ़ती रहती हैं। जैसे - अल्पकालीन ऋण (Short Term Loan), लेनदार (Creditors) Bank Loan, CC Limit (कैश क्रेडिट लिमिट) आदि।
अदत्त व्यय (Outstanding Expenses) - ऐसे समस्त व्यय जिनकी सेवाएं तो प्राप्त कर ली गई हैं परंतु उनके मूल्य का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है, जैसे कि वर्ष समाप्ति पर कर्मचारी की सैलरी बाकी है या मकान मालिक का किराया बाकी है यानी देना है किन्तु दिया नहीं गया है, तो वर्ष समाप्ति पर इसका प्रोविज़न करना होगा। इस तरह के प्रावधान (Provision) को अदत्त व्यय कहते हैं।
मूल्य-हास (Depreciation) - किसी वस्तु या संपत्ति के उपयोग से, समय व्यतीत हो जाने पर, मूल्यों में परिवर्तन से, नष्ट हो जाने या अन्य किसी कारण से जब सम्पत्ति के मूल्य में कमी आ जाती है तो इस मूल्य में होने वाली कमी को Depreciation कहते हैं।
वित्तीय वर्ष (Financial Year) - यह 12 माह की अवधि होती है जिसका हम लेखा जोखा प्रस्तुत करते हैं। चूँकि यह अवधि 12 माह की होती है इसीलिए 1 वर्ष कहलाती है।
हमारे भारत में यह अवधि यानी वित्तीय वर्ष (Financial Year) 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर 31 मार्च को समाप्त होता है।
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