- शिक्षा में अभिनव प्रयोग: संविद गुरुकुलम
- शिक्षा में अभिनव प्रयोग: Millenium School, Pune
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का शैक्षिक योगदान
- रामचंद्र मिशन का शैक्षिक योगदान
- बीएपीएस का शैक्षिक योगदान
- ईशा फाउंडेशन का शैक्षिक योगदान/सद्गुरु का शैक्षिक दर्शन
- डॉ.बृजेश कुमार गुप्ता का शैक्षिक योगदान
- कुमार विश्वास का शैक्षिक दर्शन
- राजीव दीक्षित का शैक्षिक योगदान
- शैक्षिक फिल्में
- शैक्षिक खेल
- विद्यार्थियों में नक्षत्रीय जागरूकता का अध्ययन
- आवर्तनशील कृषि के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता का अध्ययन
- विद्यार्थियों में चित्रकूट/बांदा जनपद के शैल चित्रों के प्रति जागरूकता का अध्ययन
शैल चित्र मानव की सुंदरतम अभिव्यक्ति ही नहीं वरन उसकी अमूल्य धरोहर भी है ।माना जा सकता है कि जब से मनुष्य का जीवन प्रारम्भ हुआ तभी से कला का उद्भव हो गया होगा कला एक इतिहास ही नही वरन सृजन भी है।
शैल चित्र कला, शिकार की विधि एवं स्थानिय समुदायों के जीवन जीने के तरीकों का एक 'ऐतिहासिक रिकॉर्ड'के रूप में विवरण प्रस्तुत करती है।स्थानीय निवासियों द्वारा रॉक कला का उपयोग अनुष्ठानिक उद्देश्य के लिए किया जाता था।आदिवासी समुदाय के लोग शैलों पर उत्कीर्ण चित्रों का अनुकरण कर अपने रीति -रिवाजों का पालन करते थे।
भारत में शैल चित्र निम्नलिखित गुफाओं में पाए जाए हैं-
*भीमबेटका गुफाएं-होशंगाबाद तथा भोपाल।
*बाघ गुफाएं-मध्य प्रदेश के धार जिले में बाघनी नदी के तट पर स्थित। *जोगीमारा गुफाएं-छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले मे नर्मदा के उद्गम स्थल के निकट अमरनाथ में स्थित।
*अर्म्मले गुफाए -तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में स्थित।
भारत में शैल चित्रों की सर्वप्रथम खोज वर्ष 1867-68 में रख पुरातत्वविद आर्किबोल्ड कार्लाइल द्वारा की गई।शैल चित्रों के अवशेष वर्तमान में मध्य -प्रदेश उत्तर -प्रदेश ,आंध्र-प्रदेश,कर्नाटक,उत्तराखंड, बिहार के कई जिलों में पाए गये हैं।
शैल चित्र वर्तमान में बुंदेलखंड के निम्नलिखित स्थानों में हैं-
*कोल्हुआ समूह-कोल्हुआ माफी के समीप भौंटी तथा मलुआ में 11शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं ।मलुआ में एक बैल द्वारा खिंची जा रही रहलु (बिना पहिये की बैलगाड़ी)का संचालन करते हुए सेनापति /राजा व उसके ऊपर क्षत्र लगाए हुए तथा पीछे आ रहे सैनिक प्रदर्शित हैं।
*फतेहगंज समूह -फतेहगंज के पास बिरगढ़ , कहारों वाली खदान अरी बड़ी अरी , मगरमुहा, पनिहारिया, चुड़ैल चुआ आदि स्थानों में बडी संख्या में चित्रित शैलगृह मिले हैं।
*बरौंधा समूह-फतेहगंज से दक्षिण -पश्चिम में बरौंधा के समीप पुजेरियाघाटी, पौघट, जमुनिहाई, बेड़ा पहाड़, लकढाई, टोनहा तथा चुनिहाई पाथर में श्री विजय कुमार एवं अनेक नाम आदि मानवों द्वारा चित्रित लगभग 20 शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
* पाथर कछार समूह-पत्थर कछार के समीप भुवन पत्थर , कुसुमाईअरी, रखहाई, चिलपोका, झुरा, तपक्वा, चरकी तथा देवरा पहाड़ आदि स्थलों मे चित्रित19 शैल गृह प्राप्त हुए हैं।
अध्ययन के उद्देश्य-
* बुंदेलखंड के शैल चित्रों को चिह्नित करना।
* विद्यार्थियों में सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना।
- बुंदेलखंडी लोकनृत्य के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता का अध्ययन
- बुंदेलखंडी परंपराओं के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता का अध्ययन (मामुलिया)
- फास्ट फूड के प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता का अध्ययन
- तसलीमा नसरीन का स्त्री शिक्षा क्षेत्र में योगदान
- सेवा भारती का शैक्षिक योगदान
- विवेकानंद केंद्र का शैक्षिक योगदान
- कनेरी मठ का शैक्षिक योगदान
- श्री विद्या परिषद का शैक्षिक योगदान
- संस्कृत भारती का योगदान
- भारत में तिब्बती शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य
- भारतीय शिक्षण मंडल का शैक्षिक योगदान
- संस्कार भारती का शैक्षिक योगदान
- अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ का शैक्षिक योगदान
- भारत विकास परिषद का शैक्षिक योगदान
- शिक्षा भारती का शैक्षिक योगदान
- भारत उदय गुरुकुल, हमीरपुर
- सरदार वल्लभभाई पटेल आवासीय विद्यालय, कर्वी
- दृष्टि नेत्रहीन बालिका विद्यालय, कर्वी
- ब्रह्मचर्य इंटर कॉलेज, कर्वी
- श्री कृष्ण सरल के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना
- पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार
- देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
- दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार
- शत्रुघ्न चरित् डॉ रवींद्र शुक्ला झांसी
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